लो बीत गया दिन एक और
लो बीत गयी फिर रात एक
बातें तो अभी बहुत लेकिन-
पूरी न हुई पर बात एक
चमकी आँखों में हरियाली
जीवन सपनों पर पला किया,
मन का दीपक तन-दोवट पर-
तिल-तिल कर पल पल जला किया
हम कोरी बातों में उलझे
बस, खिड़की से झाँकते रहे
देहरी चूम कर लौट गयी
फिर साँसों की बारात एक
रच कर हथेलियों पर हमने
मेंहदी की दो दिन की लाली
फूले मन ही मन समझ कि
बस, ऊषा पा ली, संध्या पा ली
पर जब तूफान उठा, घिर-
गयीं घटाएँ जब काली-काली
बदनाम हुई किस्मत पाकर
पछतावे की सौगात एक
-25.7.1975