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चमक / रामदरश मिश्र

जौहरी की बेटी की शादी में
कवि का किशोर पौत्र भी सम्मिलित था-
अपनी दादी केसाथ
वह भौचक सा देख रहा था
सेठानियों के अंग-अंग पर लदे आभूषण
अपने घर तो उसने
स्त्रियों को सादे वेश में ही देखा था
कुछ देर उसके भीतर ऊहापोह मचा रहा
फिर उसे न जाने क्यों सूझी
बोल उठा-
”दादीजी, इन सेठानियों के जेवरों की चमक
मेरे दादा जी की कविताओं की चमक के आगे
कुछ भी तो नहीं हैं“
दादी खुश हो आईं
बोलीं ‘जुग जुग जियो मेरे लाल
ऐसी ही उज्ज्वल भावनाओं के साथ“
और झुक कर माथा चूम लिया।
-12.4.2012