चमन का दिल बहुत घबरा रहा है
कि फूलों का समय फिर आ रहा है!
पँखुरियों में छिपा है भेद कोई
उघरने में मुकुल शरमा रहा है!
कि गलने औ' गलाने से हुआ क्या?
शिशिर आँसू बहाता जा रहा है!
भला तितली भरम क्यों खो रही है?
भ्रमर का रूप ग़र भरमा रहा है!
चमन का दिल बहुत घबरा रहा है
कि फूलों का समय फिर आ रहा है!
पँखुरियों में छिपा है भेद कोई
उघरने में मुकुल शरमा रहा है!
कि गलने औ' गलाने से हुआ क्या?
शिशिर आँसू बहाता जा रहा है!
भला तितली भरम क्यों खो रही है?
भ्रमर का रूप ग़र भरमा रहा है!