Last modified on 27 दिसम्बर 2017, at 19:15

चमेली की बेल / कैलाश पण्डा

मेरे घर की दीवाल से सटी
गमले में लगी
चमेली की बेल
उभरती चली जा रही है
देखते ही देखते
पड़ोसी के आंगन में
खूशबू उड़ेलती है
अरू लगा रही है
दीवाल के औचित्य पर प्रश्न चिन्ह
किन्तु उधर से काले नाग
फुंकारते हैं
उठता है जहर
मेरे आंगन में किसी भी दिन
कोई न कोई होता उपद्रव
मेरे सुख से
होती है उन्हें ईर्ष्या
उत्थान से
होता है उन्हें उन्माद
स्वयं को पाक बताने वाले
नापाक इरादों से
साजिश पे साजिश रचते हैं
जला डालते है बेल
किन्तु बरसाती मौसम में
आशाओं के आंचल में
वह पुनः पल्लवित पुष्पित होकर
उड़ेलती है सुगंध
क्रम जारी है
दीवाल से सटी
गमले में लगी
वह ढीठ
चमेली की बेल
यात्राएं सहकर भी
कुछ कहना
अरू करना चाहती है।