झील की हिमकरी छाँह-सी
तैरती आँख की
बेकली ।
हिल उठीं चम्पई सीढ़ियाँ
रूप दुहरा बिखरने लगा
हर दिशा में धुले अंग से
मोतिया रंग झरने लगा
काँपते कूल पर धर चरण
ज्योत्सना डुबकियाँ
ले चली ।
झील की हिमकरी छाँह-सी
तैरती आँख की
बेकली ।
हिल उठीं चम्पई सीढ़ियाँ
रूप दुहरा बिखरने लगा
हर दिशा में धुले अंग से
मोतिया रंग झरने लगा
काँपते कूल पर धर चरण
ज्योत्सना डुबकियाँ
ले चली ।