Last modified on 19 जनवरी 2021, at 18:12

चम्पा ने / शलभ श्रीराम सिंह

चम्पा ने
जब पलाश को देखा
थोड़ी-सी और खिल गई !

एक की हथेली ने पोंछ लिया
दूजे के माथ का पसीना
सहसा आसान हो गया जीना
बिन खोजे राह मिल गई !

चम्पा ने
जब पलाश को देखा
थोड़ी-सी और खिल गई !

ईहा की बँधी हुई मुट्ठियाँ
जीवन के उठे हुए पाँव
देख — फ़र्क अपना खो बैठे हैं
जाड़ा-बरसात — धूप-छाँव !
कुण्ठा की नींव हिल गई !

चम्पा ने
जब पलाश को देखा
थोड़ी-सी और खिल गई !