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चम्बल घाटी / शिशु पाल सिंह 'शिशु'

(1)
मानव की धरती में लोहू हुआ प्रभावित जब से,
चम्बल रानी के बहने की चली कहानी जब से।
सागर ने गंगा द्वारा, जो सन्देश भिजवाया,
वह जमुना के हाथों उसके घर आंगन तक आया।

 (2)
फिर क्या था सागर की थी जो खाई लम्बी चौड़ी,
उसको पानी से, माटी से, भरने को वह दौड़ी।
याचक की झोली भरना दाता की परिपाटी है,
माटी को कट कर बह जाना ही उसकी घाटी है।

 (3)
उच्च भावना के घोतक से ऊँचे खड़े कंगारे,
खड्डों में गम्भीर हृदय के मानचित्र हैं सारे।
चट्टानों में अडिग प्रतिज्ञा के संकेत करारे,
धारा में बहते रहते हैं पानी दार दुधारे।

 (4)
इसके तट भी अजब विरोधी कभी नहीं मिल पाते,
किन्तु साथी ऐसे वे अन्त तक साथ–साथ हैं जाते।
और किनारे की मिट्टी से बनने वाले पुतले,
जीने की सुविधा में पिछले मर मिटने में अगले।

 (5)
विज्ञापन से दूर यहाँ का है इतिहास पुराना,
जिसका सिक्का जमा वीरता का वह यही खजाना।
निश्चल मन वाले शरीर में अविचल शक्ति रही है,
राज्य भक्ति के साथ–साथ ईश्वर की भक्ति रही है।

 (6)
प्राण जांय पर बचन न जाहि यह तुलसी की चौपाई,
जहाँ अनेक बार बाँकुरे वीरों ने दौहराई.
देता है हथकांत गवाही कितने मुंड कटे हैं,
शुद्ध रक्त की लिये पताका कितने रुण्ड उठे हैं।

 (7)
ये माई के लाल विषैला जुल्म न सह पाते हैं,
किन्तु अमृत की मधुर लोरियाँ सुनकर सो जाते हैं।
इसी लिये उस रोज विनोबा ने जो जादू डाले,
झुके अहिंसा के चरणों में हिंसा के मतवाले।

 (8)
आत्म समर्पण की प्रतिमायें भक्ति भाव भरती थी,
उठी डंक-सी मूंछे दाढ़ी को प्रणाम करती थीं।
शान्त ह्रदय में वीर, करुण रस का संचार किये थे,
रौद्र रूप को त्याग सरलता का श्रंगार किये थे।

 (9)
वे वीभत्स भयंकर आँखें आँसू से धोये थे,
बाबा के अद्भुत मुसकानों में खोये-खोये थे।
जब गौतम ने एक निष्ठुर के भाव कराल सुधारे,
अब भावे बन बीस उन्होने अंगुलिमाल उबारे।

 (10)
आगे बढ़ने वाली दुनिया आगे बढ़कर आये,
उसे चुनौती आज कि ऐसा उदाहरण दिखलाये।
बड़े बड़े कानून जून से गरम जहाँ पर हारे,
वहाँ अहिंसा के सावन ने ठंडे किये अंगारे।

 (11)
मैंने माना इस भारत में जब-जब अर्जुन आये,
तब तब यहाँ उन्होने रथ के बाँके सार्थी पाये।
किन्तु मौत पर काबू पाना अपने हाथ नहीं है,
शोक हमारे साथ आज जनरल यदुनाथ नहीं है।