चरचा करी कैसे जाय।
बात जानत कछुक हमसों, कहत जिय थहराय॥
कथा अकथ सनेह की, उर नारि आवत और।
बेद रामृती उपनिषद् कों, रही नाहिंन ठौर॥
मनहि में है कहनि ताकी, सुनत स्रोता नैन।
सोब नागर लोग बूझत, कहि न आवत बैन।
हमारै मुरलीवारौ स्याम।बिनु मुरली बनमाल चंद्रिका, नहिं पहचानत नाम॥
गोपरूप बृंदावन-चारी, ब्रज-जन पूरन काम।
याहीसों हित चित्त बढौ नित, दिन-दिन पल-छिन जाम॥
नंदीसुर गोबरधन गोकुल, बरसानो बिस्राम।
'नागरिदास' द्वारका मथुरा, इनसों कैसो काम॥