चरण गहूँ माँ बारम्बार।
बसी कण्ठ में करुण पुकार॥
लो तुम दया दृष्टि से देख
द्वार खड़े हैं भक्त हजार॥
जीवन हुआ कष्ट से पूर्ण
मुक्ति हेतु सब रहे निहार॥
लगा फँसाने भीषण लोभ
मोह सिंधु की है मंझधार॥
करो नष्ट जीवन के पाप
अब तो मातु करो उद्धार॥