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चरम सुख / वंदना मिश्रा

उसे इतना देह समझा गया
कि वह खुद को देह ही
समझने लगी।

चरम सुख की लड़ाई में
वो भूल गई कि स्त्री देह
उसके मन से कभी
अलग हुई ही नहीं।

और हुई तो
दुगनी अतृप्ति के साथ
लौटी।