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चराग़ / सुधीर सक्सेना

सफ़र में किसी का थामना हाथ
फ़क़त हाथ थामना नहीं है


जब कभी ऐसा होता है
वक़्त सचमुच मेहरबाँ होता है

हाथ में हाथ देकर
बालता है वह
अन्धेरे का चराग़।