रोल कैमरा
बैकप ओके
बोल रहे डायरेक्टर,
चलचित्रों पर
बिखर गए हैं
इतिहासों के अक्षर
मूक-बधिर
सा ठगा खड़ा है
मौलिक जीवन-दर्शन
बढ़कर आगे
बोल रहा अब
मैकाले का चिंतन,
चश्मे के
पीछे से आँखें
मटकाते प्रोड्यूसर
रोल निगेटिव
दिखे पॉजिटिव
तथाकथित है सेंसर,
मार्केट वैल्यू
वाले ही अब
संवादों के मीटर
चिप्स,कुल्फ़ियां
काफ़ी, बिस्किट
वाले ही कैरेक्टर
घटनाओं में
घोटालों का
गहराया सम्मिश्रण,
सच की
परतों पर हड़ताली
मिथ्याओं का लक्षण
चिंतन भी तो
अर्थवाद से
हो बैठा इंस्पायर