चलचित्र तेरे
हवा में
छल्लेदार धुएं से
बन रहे हैं
और बन कर
मिट रहें हैं …
चाहती हूँ
दबोच लूं
यह छल्लेदार धुयाँ
जो मेरा
अंतर जला कर
बाहर निकला
प्यार कर के
काहिर निकला ….
मगर कैसे
प्यार का चलचित्र
तुम्हारा
झूमता है
दिन रात
इस मैं -
मैं जिसे
सुकुमार सपना
बनाये देखती हूँ ….
चाहे वह दबी
चिंगारी की
बची सी राख है
पर मैंने
बनाया उसे
कल्पना से …
वह चलचित्र
आज केसे
मिट रहा है
उर मेरा बिंध
रहा है . . .