॥समदन॥
चलत चलत मोरा सुरत थाकल, गुरु के नजर भेल दूर।
जनम-जनम से भक्ति न कैलहु, ताहि से नजर भेल दूर॥
यद्यपि गुरु मोरा सब में रमल छथि, पिंड-ब्रह्मांड भरपूर।
पुनि हुनका से नेह नहिं कैलहु, ताहि से गुरु भेल दूर॥
दृष्टि युगल करि करउ निहोरा, करहु दुसह दुख दूर।
‘किंकर’ कैलाएक अहैंक (गुरु के) भरोसा, करहु मनोरथ पूर॥