हम ओ कनहा कुकूर नहि
जे बाबू साहेबक फेकल
माँड़े पर तिरपित भ’ जाइ ।
हमर आदर नहि करू
जुनि कहू पण्डित, जुनि कहू बाभन
हम सरकारक घूर पर
कुण्डली मारिकें बैसल
ओ कुकूर छी
जकरा महर्षि पाणिनी
युवा आ इन्द्रक पाँतिमे
सूत्रबद्ध केने छथि ।
हमर परदादा जहिया
बाध-बोनमे रहै छलाह तहिया बाघ जकाँ
तैनि क’ चलै छलाह।
तहिया गाम छलै दलिद्दरे
मुदा छलै सारिल सीसो ।
तहिया गामक माइ-धीकें
दोसरा आँगन जा क’ आगि मँगबामे
नहि छलै कोनो अशौकर्य ।
तहिया परिवासँ टोल, टोलसँ गाम
गामसँ जनपद, जनपदसँ राष्ट्र
आ राष्ट्रसँ विश्व-परिवार बनै छलै ।
बुढ़-बुढ़ानुस कहै छलाह-
यत्र विश्वं भतत्येक नीडम् !
छाडू पुरना बातकें, बिसरि जाउ
ओ परतन्त्र देसक कुदिन-सुदिन
बिसरि जाए ओ अराँचीक खोइयामे
सैंतल परबल देल जनौ ।
आब अहाँ छी परम स्वतन्त्र
वैश्वीकरणक सुनामी
अहाँक चौरा पर साटि रहल अछि
विश्वग्रामक चुम्बकधर्मी विज्ञापन ।
एकटा जानल-सुनल अदृश्य हाथ
चटियासँ भरल किलासमे
घुमा रहल छै, ग्लोबकें ।
दुनू पैर धेनें टेबुल पर
ग्लोब पर बैसल छै कुण्डली मारि क’
पुरना क्लबक साहेब सभ
आ सहेब्बाक आगाँ बैसल छै
झुण्डक झुण्ड नँगरकट्टा कुकूर।
बदलि दियौ
नवका ‘हिज मास्टर्स वॉयस’क प्रतीक-चिह्न
कुकूरकें एकवचनसँ बहुवचन बना दियौ।