।। राग कानड़ा।।
चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ।। टेक।।
गुरु की साटि ग्यांन का अखिर, बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ।।१।।
प्रेम की पाटी सुरति की लेखनी करिहूं, ररौ ममौ लिखि आंक दिखांऊँ।।२।।
इहिं बिधि मुक्ति भये सनकादिक, रिदौ बिदारि प्रकास दिखाऊँ।।३।।
कागद कैवल मति मसि करि नृमल, बिन रसना निसदिन गुण गाऊँ।।४।।
कहै रैदास राम जपि भाई, संत साखि दे बहुरि न आऊँ।।५।।