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चलीं जा सखी / विश्वनाथ प्रसाद शैदा

जोन्हरी भुँजावै घोनसरिया चलीं जा सखी।
जोन्हरी के लावा जइसे जुहिया के फुलवा,
भूँजत झरेले फुलझरिया। चलीं जा सखी॥
काल्हू से ना कल मोरा तनिको परत बा,
देखली हाँ एको ना नजरिया। चलीं जा सखी॥
हाली-हाली चलु ना त ननदी जे देखि लीही,
बोली बोले लागी ऊ जहरिया। चलीं जा सखी॥
झन-झन बखरी करत बा तू देखु ना,
भइल बाटे ठीक दुपहरिया। चलीं जा सखी॥
चुनरी मइल होले सखी घोनसरिया में,
उड़ी-उड़ी गिरेला कजरिया। चलीं जा सखी॥
चुनरी में दाग कहीं सासुजी देखीहें तऽ,
झूठ कह दीहन कचहरिया में। चलीं जा सखी॥