♦ रचनाकार: अज्ञात
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चलो मनवा उस देश को,
हंसा करत विश्राम
(१) वा देश चंदा सुरज नही,
आरे नही धरती आकाश
अमृत भोजन हंसा पावे
बैठे पुरष के पासा...
चलो मनवा...
(२) सात सुन्न के उपरे,
सतगरु संत निवासा
अमृत से सागर भरिया
कमल फुले बारह मासा...
चलो मनवा...
(३) ब्रह्मा विष्णु महादेवा,
आरे थके जोत के पासा
चैदह भवन यमराज है
वहां नहीं काल का वासा...
चलो मनवा...
(४) कहत कबीर धर्मदास से,
तजो जगत की आसा
अखंड ब्रह्मा साहेब है
आपही जोत प्रकाशा...
चलो मनवा...