Last modified on 31 अक्टूबर 2013, at 10:25

चलो हम आज / मानोशी

चलो हम आज
सुनहरे सपनों के
रुपहले गाँव में
घर बसायें ।

झिलमिल तारों की बस्ती में,
परियों की जादूई छड़ी से,
अपने इस कच्चे बंधन को
छूकर कंचन रंग बनायें।

चलो हम आज...

तुम्हारी आशा की राहों
पर बाँधे थे ख्वाबों से पुल,
आज चलो उस पुल से गुज़रें
और क्षितिज के पार हो आयें।

चलो हम आज...

उस दिन चुपके से रख ली थी
जिन बातों की खनक हवा ने,
रिमझिम पड़ती बूँदों के सँग
चलो उन स्मृतियों में घूम आयें।

चलो हम आज...

बाँधी थीं सीमायें हमने
अनकही सी बातों में जो,
चलो एक गिरह खोल कर
अब तो बंधनमुक्त हो जायें।

चलो हम आज
सुनहरे सपनों के
रुपहले गाँव में
घर बसायें।