चल रहा है वेरमेल लेता साँस भारी
ढूँढ़ रहा है भ्रूण कोई, कोमल गान्धारी
क़िताब की जिल्द तब दिखेगी कमाल
जब उस पर चढ़ाएँगे मानव की खाल
सड़कों पर बेहद ठण्ड है, फैला है हिम
यह खालों में लिपटे हुए लोगों की मुहिम
बच्चे और औरतें ही इसके हुए शिकार
दस्ताने उनसे बने पहने सब फ़ौजदार
रोज़ा देवी चाहती है, बेटी को ले जाना
चमड़ी को उसकी विशेष मज़बूत बनाना
दम घुटने लगा वेरमेल का कामुकता से
पुस्तकालय में बैठा वह मर गया उससे
अक्टूबर 1932