भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चवरि काटणे जाइ रह्या, रावताला ना का जवांयला।
काटि लाया रावताला ना का जवांयला।
चवरि गाड़े रावताला ना का जवांयला।
रावताला ना कि कुवासणि चवरि वधावे वो।
रावताला ना कि कुवासणि चवरि वधावे वो।
रावताला ना कि कुवासणि चवरि सुति देवो।
रावताला ना कि कुवासणि, वेंडा ढुलि देवो।
-रावतला (गोत्र विशेष) के जवाँई चवरी के लिये लकडियाँ काटने जा रहे हैं। रावतला के जवाँई चवरी काटकर ले आए। रावतला के जवाँई चवरी गाड़ रहे हैं। रावतला की कुँवारी लड़कियाँ चवरी बधा रही हैं। रावतला की कुँवारी लड़कियाँ कच्चा सूत चवरी में बाँध रही हैं।
रावतला की कुँवारी लड़कियों से कहते हैं कि- कुएँ से कलश भरकर पवित्र जल लाए हैं उसे दूल्हे के सिर पर उडेल दें।