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चश्मा / चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव

कल दोपहर मुझे धूप
रोज़ से ज्यादा चटख दिखी
हवा कल
ज़्यादा गर्म महसूस हुई
प्यास भी
कुछ ज़्यादा ही लगी
सड़क का कोलतार
कुछ ज़्यादा ही पिघला नज़र आया
 
कल जो मैं
धूप का रंगीन चश्मा
घर भूल आया था