सोलहममे कएल अंतःस्थ प्रवेश,
हुलसल मन गेलहुँ नवल देश ।
हिय बसथि कला । धयलहुँ विज्ञान,
राखल जननी इच्छाक मान ।
वैद्य अंगरेजिया बनि बचाबू दीनक परान,
अर्थहीन मिथिलामे बढ़त शान।
धऽ ध्यान सुनल सृष्टिक इच्छा,
गाँठ बान्हि लेलहुँ लऽ गुरूदीक्षा।
कॉलेजमे बीतल पहिल सत्र,
आओल तातक आदेश पत्र।
पढ़िते आबू अहाँ अपन गाम,
हएत ज्येष्ठक विवाह विद्यापति धाम
तन झमकि गेल, मन गेल मुदकि
भौजीकेँ देखबनि हम हुलकि ।
आगत रवि पहुँचल जनम ग्राम,
शत अभ्यागत छथि ताम-झाम ।
चहु - दिशि भऽ रहल चहल पहल,
चिन्ह-अनचिन्ह सखासँ भरल महल।
एक नव नौतारि बहुआयामी,
पूछलसँ छथि छोटकी मामी ।
प्रथमहि हुनकासँ भेंट भेल,
भेल दुनू गोटेमे क्षणहि मेल।
साँझे औतीह दीदी अनिता,
आकुल माँक एक मात्र वनिता ।
देखिते देखैत आबि गेल साँझ,
माँ तकिते बाट ओसार माँझ ।
दीदी आंगन आयलि हँसिते हँसैत
माँ गऽर लगौलनि ठोहि कनैत ।
दीदीक नयन हेरायल रिमलेसमे,
देखि मामी पड़ली पेशोपेसमे।
चश्मामे सुन्नर दाइक विभा,
बढ़ि रहल हिनक नयनक शोभा ।
मामी! ई सऽख नहि आँखिक इलाज,
माथ दर्दसँ छल बाधित सभ काज।
सुनि मामी मोन भऽ गेल अलसित,
हुनक वाम आँखिमे पीड़ा अतुलित ।
नोचिते नोचैत भेल नयन लाल,
दर्द पसरि रहल सम्पूर्ण भाल।
आंगन दलान पीड़ा किल्लोल,
आँखि धोलनि लऽ जल डोले डोल।
फूलि गेल नयनक अधर पल,
हम सेकलहुँ लऽ गुलाब जल।
वैद्यो आयल नहि कोनो असरि,
कछमछ कऽ रहली- रहली कुहरि।
मा तेँ कयलनि बाबूजीक ध्यानाकर्षण,
आँगनमे आबि ओ दऽ रहला भाषण।
सभ दोष सारक नहि दैछ ध्यान,
वयस तीस मुदा एखनहुँ अज्ञान।
रक्त जमल विलोचन झिल्लीमे,
सैनिक कंत पड़ल छथि दिल्लीमे।
सरहोजिसँ पुछलनि पीड़ाक काल,
पहिल बेर भेल छल परूकाँ साल।
माँसँ कहलनि लाउ नव अंगा,
हिनका लऽ जायब दड़िभंगा ।
तिरस्कार करब नहि हएत उचित,
कनिया दरदसँ अति विहुँसित ।
काल्हि अछि विवाह अहाँ जुनि जाऊ,
करैत छी उपाय नहि घबराऊ
भोरे ‘टिल्लू' जेता हिनक संग,
नहि विवाहमे कऽ सकलाह हुड़दंग ।
भातृक सासुर जेता चतुर्थीमे,
मातृ आदेश लागल हम अर्थीमे।
नहि बात काटल शांत छलहुँ सुनैत,
राति बितल सुजनीमे कनिते कनैत।
कोन बदला लेलक बापक सार,
अपन संकट बान्हल हमरा कपार।
मामीकेँ हम नहि चीन्हि सकलहुँ,
भीतरसँ इन्होर ऊपर शीतल ।
नहि जा सकलहुँ हम बरियाती,
गाबै छी हुनक दुःखक पाँती,
भोरे उठि दड़िभंगा जा रहलहुँ,
नैनक शोणितसँ नहा रहलहुँ।
पहुँचल डॉक्टर मिसिरक क्लिनिक,
चक्षुक चिकित्सक सभसँ नीक
दुआरे पर कम्पाउन्डर नाम पुछल,
मामी नुपूर कहनि ओ कुकुर लिखल।
देखऽ मे भल पर वज्र बहीर,
उपरि मन हँसल, भीतर अधीर ।
वैद्य मिसिर कहल नहि दृष्टि दोष
दुहू आँखिये देखै छथि कोसे- कोस।
नेत्रक आगाँ नहि अछि अन्हार
हिनका लागल चश्माक बोखार ।
हम लिखि दैत छी शून्य ग्लास,
बुझा दिऔन हिनक रिमलेशक प्यास।
ताहूसँ जौं नहि हेती नीक,
आँखि सेकू बनि स्नेही बनिक,
अधरपर मुस्की आगाँ अन्हार,
कानल मन सोचि विवाहक मल्हार।
डॉक्टर बनक तृष्णा मनसँ भागल,
एहेन मरीज भेटत तँ हएब पागल।
धुरि गाम माताकेँ करब नमन,
तोड़ू जननी हमरासँ लेल वचन ।
चशमिश नैन मामी छथि अति गदरल,
हमर योजना हिनक भभटपनमे उड़ल ।