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चाँदनी चली सकुचती सी / गुलाब खंडेलवाल



चाँदनी चली सकुचती सी

स्वर्णिम हार गूँथे अलकों में
कौतुक-सा चम्पक पलकों में
पहने तारों की झलकों में
गोरे तन पर नीली साड़ी मन को रुचती-सी

मौन मधुप, मुकुलों में मर्मर
दायें , बायें, नीचे, ऊपर
चौंक, चकित-दृग, काँपी थर-थर
पगतलियाँ रक्ताभ उठा कलियों से नुचती-सी

दीपक में लौ की छाया-सी
छाया में लय कृश काया-सी
लीन हुई तम में माया-सी
हिम-से उर में दीप दबाये पास पहुँचती सी

चाँदनी चली सकुचती सी