आज दिन भर सूरज
तकली पर धागों सी
किरनें काता किया
हवा
अपने तरकश के
पुरवाये-पछुवाये
तीर
फेंकती रही
आदमी के सीने-सी
एक दीवार ने
खूब लोहा पिया
खूब सीसा पिया
आज
यहाँ जम करके
चाँदमारी हुई
आज दिन भर सूरज
तकली पर धागों सी
किरनें काता किया
हवा
अपने तरकश के
पुरवाये-पछुवाये
तीर
फेंकती रही
आदमी के सीने-सी
एक दीवार ने
खूब लोहा पिया
खूब सीसा पिया
आज
यहाँ जम करके
चाँदमारी हुई