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चाँदमारी / दिनेश कुमार शुक्ल

आज दिन भर सूरज
तकली पर धागों सी
किरनें काता किया

हवा
अपने तरकश के
पुरवाये-पछुवाये
तीर
फेंकती रही

आदमी के सीने-सी
एक दीवार ने
खूब लोहा पिया
खूब सीसा पिया

आज
यहाँ जम करके
चाँदमारी हुई