उम्मीदों की मुण्डेर पर
बैठे चाँद से कहा मैंने
तुम आज कल मिलते नहीं
मेरे सपने बुनते नहीं
रूठा चाँद बोला
मुझे न रातों में
न बातों में
ढूँढ़ना तुम
में तो जाने कब
फिसल कर उम्मीदों की मुण्डेर से
सदियों से कर्म-पगडण्डिया बुन रहा हूँ
उम्मीदों की मुण्डेर पर
बैठे चाँद से कहा मैंने
तुम आज कल मिलते नहीं
मेरे सपने बुनते नहीं
रूठा चाँद बोला
मुझे न रातों में
न बातों में
ढूँढ़ना तुम
में तो जाने कब
फिसल कर उम्मीदों की मुण्डेर से
सदियों से कर्म-पगडण्डिया बुन रहा हूँ