जब चांद उगता है
घंटियाँ मंद पड़कर ग़ायब हो जाती हैं
और दुर्गम रास्ते नज़र आते हैं
जब चांद उगता है
समन्दर पृथ्वी को ढक लेता है
और हृदय अनन्त में
एक टापू की तरह लगता है
पूरे चांद के नीचे
कोई नारंगी नहीं खाता
वह वक़्त हरे और बर्फ़ीले फल
खाने का होता है
जब एक ही जैसे
सौ चेहरों वाला चांद उगता है
तो जेब में पड़े चांदी के सिक्के
सिसकते हैं !
अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे