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चांद की शादी / मोहन अम्बर

चंदा की शादी है चाँदी की रातें हैं,
तुमसे कुछ कहने को अधरों पर बातें है,
फागुन की रातें हैं।
झिल-मिल से तारे हैं आतिश अनारों से,
उजली पोशाकांे में बादल कहारों से,
नभ वाली डोली में दूल्हे से चंदा को,
लेकर जो जाते हैं धरती को भाते हैं,
फागुन की रातें हैं।
नदिया पातुरनी-सी पायल बजाती है,
समधिन-सी गेहूँ की बालें लजाती हैं,
दर्शक समूहों से पेड़ों के कुनबे हैं,
खुशियों में भर-भर जो हिल-ढुल कर गाते हैं,
फागुन की रातें हैं।
गंधी की लड़की-सी बेेला चमेली है,
खुशबू-सा यौवन ले फिरती अकेली है,
बाराती लड़कों-से गेंदे के फूलों पर,
कनखी ही कनखी में कर जाती घातें हैं,
फागुन की रातें हैं।
खेतों के लावे मशालों से जलते हैं,
शिशिर के झोंके बराती से चलते हैं,
पीपल के पत्तों को ताशों-सा बजता सुन,
अनगिन अनब्याहे से मन दुख-दुख जाते हैं,
फागुन की रातें हैं।