Last modified on 28 जून 2017, at 00:38

चाकरी / मनमीत सोनी

रात कीं नीं
बस नांव है
पसवाड़ो फेर'र
च्यानणैं रै सुस्ताणै रो
अर दिन
दिन भी कीं नीं
बस खेल है
पसवाड़ो फेर'र
अंधारै रै आराम फरमाणै रो-

आं दोन्यां री चाकरी में
जे कोई
नीं झपकी है पलक
तो वा है
आ धरती...।