Last modified on 14 मार्च 2013, at 00:36

चानडुबी / दिनकर कुमार

नीले पहाड़ को चूमकर
हवा ने मेरे चेहरे पर
बिखेर दिया नीलापन

पानी में काँपती रही
तुम्हारी परछाई
मलाहिन अकेले ही
चप्पू चलाती रही
नाव में उछलती रही
रंग-बिरंगी मछलियाँ

चानडुबी<ref>असम की एक झील</ref> की ख़ामोशी
इस कदर गहरी थी
जैसे वह ठोस बन गई हो
और पत्ते गँवा चुके पेड़
प्रार्थना कर रहे थे
तुमने सिर्फ़ आकृति देखी थी
चानडुबी पहुँचने से पहले
पहचान पाई थी बाहरी रंग

चानडुबी ने तुम्हें खोल दिया
पुरानी गाँठ की तरह
और तुमने मुझे महसूस किया
जीवन्त धड़कन की तरह
अनाम फूल की गंध की तरह

और चानडुबी तुम्हारी आँखों में
झिलमिलाती रहेगी
मेरी कविता ।

शब्दार्थ
<references/>