माता काली की आराधना तथा उनकी साज-सज्जा और सांसारिक जीवों को अपने अहं को त्यागने का संकेत इस गीत में है।
चाननहिं<ref>चंदन से</ref> अँगना निपल गहागही<ref>गहगह; चकमक; चकाचक</ref>, आजु मोरा ऐती<ref>आयेंगी</ref> कलिका<ref>काली माँ</ref> मेहमान हे।
आहे नर लोग नै<ref>नहीं</ref> करु गुमान, दुखहरनी कलिका ठाढ़ भेली थान<ref>स्थान; देवत्थान में</ref> हे॥1॥
कथि फूल ओढ़नी, कथि फूल पिन्हनी, कथि फूल सोभै गलाहार हे।
बेली फूल ओढ़नी, चमेली फूल पेन्हनी, अरहुल फूल सोभै गलाहार हे॥2॥
केहि फूल चूनत, केहि फूल गूँथत, किनका गले सोभै हार हे।
भगता<ref>वह व्यक्ति, जो देवी की पूजा-आराधना में लगा रहता है तथा देवस्थान की लिपाई-पुताई करता है। देवी-देवता पर चढ़ने वाली सामग्री का अधिकारी भी वही होता है</ref> फूल चूनत, मलिया फूल गूँथत, दुरगा देबी गले सोभै हार हे।
अहे नर लोग नै करु गुमा, दुखहरनी कलिका ठाढ़ भेली थान हे॥3॥