ये दो प्रेमी
जो अब बूढ़े हो चुके हैं, इस होटल
में, लगातार चालीस वर्षों से, चाय पीते आ रहे हैं, सुना जाता
है, इन्हें इसी होटल में चाय पीते-पीते प्यार हुआ था, हालाँकि
एक सम्बन्ध बनने के पहले से, इस होटल में, चाय
पीते आ रहे हैं, किसी ने इन्हें
इस होटल में
खाना खाते हुए, कभी
नहीं देखा, नाश्ता करते हुए भी, जिन्होंने देखा
चाय पीते देखा, और बातें करते हुए, पर किसी ने इनकी बातें कभी अक्षरशः
स्पष्ट नहीं सुनीं, हालाँकि मुस्कुराते, हँसते, उदास होते और रोते हुए, कइयों ने
स्पष्ट रूप से देखा है, लोगों का मानना है, इन्हें राजनीति और
इतिहास में, कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं
शायद, कि अपने वर्तमान
पर बहस करते, अतीत पर
विचारते, किसी ने आज तक भाँपा तक नहीं, इन्हें जितनी
जल्दी होती है, सड़क पार करने की, उतनी ही जल्दी होती है भीड़ से बाहर निकलने की
पर जाने क्यों, इस भीड़-भरे होटल में, इन्हें कभी जल्दी नहीं हुई, इन्हें अक्सर देखा गया है
जब आते हैं, हाथ में एक पुरानी डायरी होती है, और एक क़लम, पर वह पुरानी
नहीं, इनके कपड़ों से, फूल-सी ख़ुशबू आती है, हालाँकि
फूल, बूढ़े की ज़ेब में न बुढ़िया
के बालों में दिखते, ये एक-दूजे
के प्रेमी, लगातार चालीस वर्षों से, इस होटल में पैदल चलकर
आते रहे हैं, पर इन्हें एक साथ आते हुए, कभी-कभार ही किसी ने देखा होगा, इनके मुहल्ले
के लोग, इस होटल में जब आते हैं, चाय पीने खाना खाने, उन्हें इनके बारे में 'पागल हैं' कहते
सुना गया है, बाक़ी और कुछ नहीं, कि वक़्त के इस मोड़ पर, आ चुके हैं ये चाय
पीनेवाले, बाक़ी और कुछ, कहनेवालों में से, कितने कबके
मर-खप गए, कितनों की दिलचस्पी
नहीं रही, अब तो जो हैं
आदर ही करने लगे हैं, पर वेटरों ने इन्हें दिल से
आदर कभी नहीं किया, कि अपने प्रेम-जीवन में इन्होंने, एक बार भी किसी
वेटर को, एक चवन्नी क्या, एक अधन्नी तक नहीं दी, जबकि ये दोनों, शिक्षक
शिक्षिका रहे हैं, किसी-किसी से पता चलता है, कि इनके कुछ
विद्यार्थी, इनका बहुत सम्मान करते थे, कि ये
उनकी ग़लतियाँ ज़्यादातर
माफ़ कर देते थे, और
पढ़ाते थे तो बस पढ़ाते थे, बात नहीं करते
थे, सुनते भले थे, ये चाय पीनेवाले प्रेमी, जो कबके सेवानिवृत्त हो चुके
अब तक ग़ैर-शादीशुदा हैं, पता नहीं, अलग-अलग मुहल्ले में रहनेवाले
अपने घर के ये अकेले प्राणी, जब इस दुनिया से जाएँगे
वह कौन सी अधूरी इच्छा होगी, जिसे पूरी
तरह पाना चाहेंगे
और पाकर छोड़ जाएँगे !