Last modified on 6 सितम्बर 2024, at 17:04

चाय पीने के बाद उसके घर से निकलते हुए / बैरागी काइँला / सुमन पोखरेल

आज, मेरे हजूर की
दर्शनार्थ — धृष्टता करने की सोच से
ऐसे, इस तरह बनकर आया था।

आज, मेरे हजूर की
खिदमत में बहुत कुछ कहने की सोच से
ऐसे, इस तरह झूमकर आया था।

शिष्टता के लिए साधुवाद,
चाय के लिए धन्यवाद।

और क्या कहूँ ...
सब कुछ भूल गया, जो कहने की सोचकर आया था।

देखिए...
इन आँखों में शरमाते हुए जो चित्र थे,
मेरे हजूर के ही होंगे, सोचकर
दीखाने के लिए आया था।
०००
...........................................
यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ ।