दिन भर मणिधर सूर्य जीभ से ब्रह्माण्ड की चिता लपट-सी सुनहरे रंग को चाट कर एक लाल कीड़े की तरह चला गया है । चारों ओर -- आदमी के मुँह में जैसे रह गया है अन्धेरा ।