कीमया-ए-दिल क्या है, खा़क है, मगर कैसी?
लीजिये तो मँहंगी है, बेचिये तो सस्ती है॥
खिज्रे-मंज़िल अपना हूँ, अपनी राह चलता हूँ।
मेरे हाल पर दुनिया क्या समझ कर हँसती है॥
बन्दा वो बन्दा जो दम न मारे।
प्यासा खड़ा हो दरिया किनारे॥
शबे-उम्मीद कट गई लेकिन--
ज़िन्दगी अपनी मुख़्तसिर न हुई॥