परवाने कर चुके थे सर-अंजामे-ख़ुदकशी<ref>आत्महत्या का प्रयत्न</ref>।
फ़ानूस आडे़ आ गया, तक़दीर से॥
सुहबते-वाइज़ में भी अँगड़ाइयाँ आने लगीं।
राज़ अपनी मैकशी का क्या कहें क्योंकर खुला॥
रोशन तमाम काबा-ओ-बुतख़ाना हो गया।
घर-घर जमाले-यार का अफ़साना हो गया॥
दयारे-बेखु़दी है अपने हक़ में गोश-ये-राहत।
गनीमत है घड़ी भर ख़्वाबे-ग़फ़लत में बसर होना॥
शब्दार्थ
<references/>