जीवन भर
हम चार लोगों से घिरे रहते हैं
हर बात की बात में
जिक्र आता है
इन्हीं चार लोगों का
जागते-सोते
अवचेतन में बड़बड़ाते रहते हैं हम
’’चार लोग क्या कहेंगे !’’
’’चार लोग क्या कहेंगे !’’
जैसे एक ब्रह्म वाक्य है
अमूमन इन चारों की सोच
हमारी सोच से मेल नहीं खाती
फिर भी घूम-फिरकर हमारा सारा कुछ
इन्हीं चारों के इर्द-गिर्द घटता रहता है
फैसलों के वक्त
अक्सर यही चार लोग
असमंजस का कारण बनते हैं
हर बार ये चार ही होते हैं जो
आखिरी समय में
अपना कंधा देने की दुहाई देते हैं
और हम पसीज जाते हैं
इन चार लोगों से मुक्ति ही
असली मोक्ष है।