देख की अपनी बेक़सी किसलिए जी में हो खफ़ीफ़
मूनिस हमनवाँ मेरे बेहरो-क़वाफ़ियो-रदीफ़
आज वो हो चुका जो था आपका आशिक़ नज़ार
दौरे-जहाँ से उठ गया हुस्न का परतव लतीफ़
देखना दर पे कौन अभी देता हुआ सदा गया
और काफ़िले-दर्द पर आपका दौलते-शरीफ़
भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है
आह ज़माना भी है कुछ आप ही नहीं सितम ज़रीफ़
(1955 में रचित)