परशुराम, श्रीराम, भीम, अर्जुन, उद्दालक।
गौतम, शंकर सरिस धर्म सत्त के संचालक॥
उत्साही, दृढ़ जंग प्रतिज्ञा के प्रतिपालक।
शारीरिक मस्तिष्क शक्ति बल अरिगण घालक॥
काज करें मन लाय बनें शत्रुन उर शालक।
अब भारत मातहिं चाहिये ऐसे बालक॥
दुर्बल अरु भयभीत सदा जो कहत पुकारी।
"अरे बाप! यह काज हमैं सूझत अति भारी॥"
"मैं नाहीं कर सकता" शब्द मुख तें न उचारैं।
"हाँ करिहों उद्योग" सहित उत्साह पुकारैं॥
सत्य भाव तें कहें, करैं अरु बनैं न टालक।
अब भारत मातहिं चाहिए ऐसे बालक॥
जो करना है उसे करैं अपने निज हाथन।
देश भलाई हेत करैं अभिलाषा लाखन॥
कठिन परिश्रम देखि न कबहूँ मन ते हारैं।
भारी भार निहारि न कबहूँ कंधा डारैं॥
करैं काज बनि कुलकलंक कारिख प्रच्छालक।
अब भारत मातहिं चाहिए ऐसे बालक॥
देखि कठिन कर्तव्य उसे जूजू जनि जानैं।
अपना धर्म विचार उसे अपना कर मानैं॥
ऐसे बालक जबहिं देश के मुखिया ह्वै हैं।
तब भारत के सकल दुख दरिद्र नसैहैं॥
मिटिहैं हिय को ताप और कटिहैं जंजालक।
अब भारत मातहिं चाहिये ऐसे बालक॥