चाहे दो ही
चार शब्द हों,
चाहे कुछ भी
नहीं कहें वो
लेकिन जब भी
भीतर उमड़ें
चट्टानों से फूट
बहें वो
उनको सुनने
चुप बैठूँगी,
जब आयेंगे
हांेठों पे उँगली दूँगी;
सुनना ही तो
कविता है!
चाहे कुछ भी
नहीं कहें वो।
चाहे दो ही
चार शब्द हों,
चाहे कुछ भी
नहीं कहें वो
लेकिन जब भी
भीतर उमड़ें
चट्टानों से फूट
बहें वो
उनको सुनने
चुप बैठूँगी,
जब आयेंगे
हांेठों पे उँगली दूँगी;
सुनना ही तो
कविता है!
चाहे कुछ भी
नहीं कहें वो।