Last modified on 16 अप्रैल 2018, at 19:19

चाहे दो ही शब्द हों / सुनीता जैन

चाहे दो ही
चार शब्द हों,
चाहे कुछ भी
नहीं कहें वो

लेकिन जब भी
भीतर उमड़ें
चट्टानों से फूट
बहें वो

उनको सुनने
चुप बैठूँगी,

जब आयेंगे
हांेठों पे उँगली दूँगी;
सुनना ही तो
कविता है!

चाहे कुछ भी
नहीं कहें वो।