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चाह कर भी / मधुछन्दा चक्रवर्ती

चाह कर भी
कह नहीं पाते है दिल की बात
हो जाते हैं गुमसुम
दर्द भरे, अजनबी हालात।

अनजाने वह हो जाते हैं
जो हैं बरसों से जाने-पाहचाने
क्यों करते हैं ऐसा
बोलो हम क्या जाने?

रिश्तें टूट चुके है पर
अभी भी हैं निभाते हुए
अपने थे कभी यें
पर अब पराए हुए।

दोनों की मंजिल नहीं है एक
तो चलना क्यों साथ-साथ
हमराही की गुंजाइश कहाँ है
अब तो तन्हा है हालात।