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चिकना होने से पहले / सुनीता जैन

चिकना होने से पहले
पत्थर, धुलता है कितने
पानी से?
छिनता है किन
कगारों से?
गिरता है किस-किस
पर्वत से?

निर्मल होने से पहले
मन दुखता है केसे
दंशों से?
बिंधता है
किस इच्छा से?
खाली होता है
किन अपनों से?
कविता होने से पहले
भाषा
दिपती कितने
संस्कारों से?
मंजती है
कितने मौन से?
झंकृत होती
कितने आवेश से?