लएह ! चिचियाएल अश्वत्थामा दूध आर रोटीकेर खातिर !
सम्हरह द्रुपदक औरस ! आब ने मानत द्रोण !!
स्वयं सहै ले सहओ ओ जे किछु; मुदा सन्ततिक चिन्ता,
उद्वेलित ओकरा क’ देतै;
विद्या अप्पन घोंटि-घाँटि क’ फेकत एम्हर-ओम्हर !
अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर सन-सन कतेक रथी, महारथी होएत।
(अनिति दूरमे बुझा रहल अछि शंका कोनो महाभारत केर !)