चिट्ठी-पत्री, ख़तो-किताबत के मौसम-
फिर कब आएँगे?
रब्बा जाने-
सही इबादत के मौसम
फिर कब आएँगे?
चेहरे झुलस गए क़ौमों के लू-लपटों में,
गंध चिरायंध की आती छपती रपटों में;
युद्धक्षेत्र से क्या कम है ये मुल्क हमारा-
इससे बदतर
किसी क़यामत के मौसम
फिर कब आएँगे?
हवालात-सी रातें, दिन कारागारों-से,
रक्षक घिरे हुए चोरों से, बटमारों से;
मुंसिफ अहकार मज्कूरे सभी नदारद-
बंद पड़ी इजलास
ज़मानत के मौसम
फिर कब आएँगे?
ब्याह, सगाई, बिछोह-मिलन के अवसर चूके,
फसले चरे जा रहे पशु, हम मात्र बिजूके।
लगा अँगूठे कटवा बैठे नाम खेत से।
जीने से भी बड़ी
शहादत के मौसम
फिर कब आएँगे?