एक दिन अहले सुबह
भूरे ऊन के गोले सी नन्हीं चिड़िया ने
अपनी आँखें खोली
बहुत प्यार भरी उष्मा से
अपनी आस=पास की दुनिया को निहारा
उस सुदूर उड़ान के लिए
अपने पंखों को तौला
कुछ तिनके लिए और
एक लम्बे मुश्किल सफ़र के लिए चल पड़ी
उत्साह से लबरेज
पर शाम होते ही
दुर्बल पंखो को फड़फड़ाती
अपने उसी घोंसले में सिमट आई
शायद इस दुःख के साथ
कि हमारी क़िस्मत इतनी नपी-तुली क्यों हैं