Last modified on 30 मई 2022, at 09:11

चिड़िया को देखना / पारुल पुखराज

चिड़िया को देखना
ख़ुद को देखना है

जैसे
देखती है
वह

फूल
पत्ती
दूब
धूप

उड़ती है जंगल में
जंगल होकर

नदी पर
नदी-सी बहती है