Last modified on 25 मई 2011, at 23:08

चिड़िया नहीं हूँ मैं / प्रतिभा कटियार

चिडिय़ा नहीं हूँ मैं
कि आएगा कोई आखेटक
बिछा देगा जाल
और फँस जाऊँगी मैं ।

धरती नहीं हूँ मैं कि
दुनिया भर के अवसाद
तकलीफ़ें समाकर अपने भीतर
लहराती रहूँगी सदा ।
आसमान नहीं हूँ मैं
कि सिर्फ़ देखती रहूँ दूर से
सब कुछ होते हुए
कर न सकूँ कुछ भी ।

डरो नहीं, आग भी नहीं हूँ मैं
कि लगाओगे हाथ
और जल जाओगे तुम ।
नेह की एक बूँद हूँ
जो नेह से पिघल जाती है
बादल बनकर बरस जाती है
पूरी धरती पर, समंदर पर
दरख़्तों पर

कायनात के इस छोर से
उस छोर तक
नेह ही नेह...