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मैं हूँ और मेरे बड़े भाई
फिर मन लौट गया
अतीत की सँकरी पगडंडियों पर
याद आई भाई की
कठोर अनुशासनप्रियता
बात-बात पर डाँटना-मारना
या फिर दुतकारना
इसमें नहीं था
उनका कोई दोष
यह तो था शायद
उस समय की
सामाजिक व्यवस्था का खोट,
जो बेटे और बेटी में
रखती थी भेददृष्टि
दादी के लाड़-प्यार ने
बना दिया था भाइयों को
कुछ ऐसा ही !
हर विषम परिस्थिति का
हिम्मत से मुकाबला करना
आदत बन गई थी हमारी !
हमने समझाया मन को
कि हर विषम परिस्थिति का
हिम्मत से करे मुक़ाबला
और न टूटने दे स्वयं को !