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चितुर-पितुर / हेमन्त देवलेकर

(डुम्पु के लिये)

आड़ी-तिरछ़ी, गोल-चौकोर लकीरें
इनमें छुपी भाषा की तकदीरें

यह अनाम, अरूप, अजाना
ढेर जो चितरा है
दरअसल अनंत का बिंदुपन है
उद्गम है समुद्र का

इन्हीं में से
अंकुरित होंगे अक्षर
इन्हीं में से उभरेंगे अंक
चिन्ह इन्हीं से

वाक्यों के मोहल्ले में रहने वाले
किताब शहर के नागरिक, अक्षरों।
आओ देखो
तुम सब बचपन में ऐसे ही थे
अनाम, अरूप, अजाने,
सिर्फ़ गोल-गोल
आड़ी-तिरछी
उल्टी-सीधी लकीरें...