Last modified on 6 सितम्बर 2020, at 22:30

चित्र बना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

चित्र बना रे चित्र बना,
कुछ बिरला कुछ घना-घना।
चित्र बना रे चित्र बना।

जिसमें ऊँचा पर्वत हो।
पर्वत पर बा दल रत हो।
बादल जोरों से गरजे।
अर्रा कर पानी बरसे।
आंधी से बूढ़े खजूर का,
जोर-जोर से हिले तना।
चित्र बना रे...

फटर-फटर बज उठें किवाड़।
होनें लगें बंद सब द्वार।
बूढ़े छुपें रजाई में।
बच्चे भिड़ें पढाई में।
ले कर अम्मा आ जाएँ,
चाय कुरकुरे भुना चना।
चित्र बना रे...

बिजली कड़के जोरों से।
खिड़की भड़के शोरों से॥
टूटी डाल झकोरों से।
आम झड़ गए बोरों से।
बीनें जितना बीन सकें,
कौन करेगा अभी मना।

चित्र बना रे चित्र बना।